What is Relay in Hindi? रिले क्या होता है और किस प्रकार कार्य करता है ? Relay की संपूर्ण जानकारी हिंदी में -Electrical Gyan

Written By Akhilesh Patel

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आज के इस युग में इलेक्ट्रिसिटी अर्थात बिजली की खपत बहुत बढ़ गई है । हर जगह बिजली से चलने वाले डिवाइस उपयोग किए जा रहे हैं चाहे वो घर हो ,ऑफिस हो या फिर कोई इंडस्ट्री हो। घरों या दफ्तरों में उपयोग होने वाले  उपकरणों के voltage और current का एक निर्धारित लेवल होता है। अगर किसी दोष के कारण वोल्टेज और करेंट का मान उनके निर्धारित मान से अधिक हो जाता है तो उपकरण खराब हो सकते हैं ।

ऐसे में उपभोक्ता को दोष मुक्त बिजली की आपूर्ति करना  एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और टेक्नीशियन के लिए जटिल कार्य हो जाता है । 

इसके लिए यह जरूरी है कि परिपथ में एक ऐसा सुरक्षा उपकरण  लगा होना चाहिए ताकि परिपथ में कहीं भी कोई fault उत्पन्न हो तो वह उपकरण fault को जल्दी से जल्दी ढूंढकर  faulty section को अलग कर दे । तो इस जटिल कार्य को अंजाम देने के लिए रिले का उपयोग किया जाता है । 

Relay क्या होता hai

 

दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम जानेंगे कि कि रिले क्या होता है ( what is relay in hindi) , रिले किस प्रकार कार्य करता है ,रिले कितने प्रकार के होते हैं और रिले को परिपथ में लगाने से क्या लाभ और हानि होती है

What is relay in hindi ? रिले क्या होता है ?

रिले एक प्रकार का प्रोटेक्टिव डिवाइस है जिसका कार्य पावर सिस्टम में या किसी परिपथ में उत्पन्न होने वाले दोष (fault) को ढूंढना और उस faulty section को अलग करने के लिए circuit breaker को सिग्नल देना होता है । 

 
जैसा कि हम सब जानते है कि एक पावर सिस्टम , जनरेटर, ट्रांसफार्मर,ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन परिपथों से मिलकर बना होता है । अगर किसी कारण वश परिपथ में कहीं भी कोई fault उत्पन्न होता है तो उस fault को जल्दी से जल्दी ढूंढकर दूर कर देना चाहिए अगर  प्रदोष को ढूँढ़कर दूर नहीं करेंगे तो यह प्रदोष कस्टमर को मिलने वाली सप्लाई को बाधित करेगा। दूसरा, काम में आने वाले यन्त्रों को अधिक नुकसान होगा तथा प्रदोष सब जगह फैलकर पूरे सिस्टम की सप्लाई को बाधित करेगा। 
इसलिए फॉल्ट का पता लगाना और faulty section को डिस्कनेक्ट करने के लिए रिले के साथ सर्किट ब्रेकर को काम में लाते हैं । 

रिले का विकास (Evolution Of Relay)

एक फ्यूज के द्वारा भी हम परिपथ में प्रदोष का पता लगाना तथा प्रदोष को दूर करना दोनों काम कर सकते हैं  लेकिन फ्यूज इस कार्य को एक सीमित वोल्टेज तक ही कर सकता है । लेकिन अधिक वोल्टेज वाले परिपथों के लिए  रिले के साथ सर्किट ब्रेकर को लगाकर  इस प्रदोष को आसानी से दूर कर सकते हैं । इस प्रकार रिले का उपयोग शुरू हो गया । 
 
रिले का विकास 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ, जब वैज्ञानिकों ने विद्युत चुंबक की खोज की। विद्युत चुंबक का उपयोग एक स्विच को सक्रिय करने के लिए किया जा सकता है, जो एक विद्युत सर्किट को पूरा करता है। इस सिद्धांत का उपयोग करके, पहले रिले विकसित किए गए थे।
 
शुरुआती रिले इलेक्ट्रोमैकेनिकल प्रकार के थे, जो एक विद्युत चुंबक का उपयोग करके एक स्विच को सक्रिय करते थे। ये रिले बड़े और भारी थे, और उनके संचालन में समय लगता था।
 
20वीं शताब्दी में, सॉलिड-स्टेट रिले का विकास हुआ। ये रिले सेमीकंडक्टर उपकरणों का उपयोग करके एक स्विच को सक्रिय करते हैं, जो इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले की तुलना में तेज़ और अधिक विश्वसनीय होते हैं।
 
आजकल, डिजिटल रिले का उपयोग किया जाता है। ये रिले एक माइक्रोप्रोसेसर का उपयोग करके एक स्विच को सक्रिय करते हैं, जो उन्हें इलेक्ट्रोमैकेनिकल और सॉलिड-स्टेट रिले दोनों की तुलना में अधिक बहुमुखी बनाता है। डिजिटल रिले में कई उन्नत सुविधाएं होती हैं, जैसे कि स्व-निदान, संचार क्षमता, और प्रोग्राम योग्यता।

Relay का निर्माण ( Construction of Relay in Hindi) 

रिले निम्न भागों से मिलकर बना होता है 
  1. आर्मेचर या coil 
  2. कोर
  3. Contact 
  4. Spring

आर्मेचर 

रिले में आर्मेचर एक प्रकार का coil होता है जिसे विद्युत सप्लाई देने से यह एक विद्युत – चुंबक की तरह कार्य करता है तथा रिले के संचालन के लिए यह भाग ही आवश्यक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है । 
 
Construction of relay

 

कोर 

यह एक प्रकार का चुंबकीय पदार्थ होता है जो लोहे या स्टील से बना होता है । इस कोर पर ही आर्मेचर की वो वाइंडिंग की होती है ।

संपर्क 

Contact रिले का एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक है जो रिले के संचालन के दौरान विद्युत प्रवाह को जोड़ते या तोड़ते हैं । यह आमतौर पर दो या दो से अधिक होते हैं जो रिले के फ्रेम में स्थित होते हैं। Contact प्रायः तांबा या चांदी के बने होते हैं । 
  • Normaly Open ( NO) संपर्क:- ये संपर्क सामान्य रूप से खुले होते हैं, और जब रिले सक्रिय होता है तब वे बंद हो जाते हैं।
  • Normaly Close (NC) संपर्क:- ये संपर्क सामान्य रूप से बंद होते हैं, और जब रिले सक्रिय होता है तब वे खुल जाते हैं। 

स्प्रिंग

स्प्रिंग रिले में लगा एक लचकदार तत्व होता है जो संपर्कों को उनकी सामान्य स्थिति में वापस लाने का कार्य करता  है। स्प्रिंग आमतौर पर स्टील या तांबे से बना होता है। 

फ्रेम (Frame)

यह एक इन्सुलेट सामग्री से बना होता है जो रिले के सभी घटकों को एक साथ रखता है और उन्हें विद्युत रूप से पृथक करता है। फ्रेम आमतौर पर प्लास्टिक या बैकेलाइट से बना होता है।
इन घटकों को एक साथ जोड़कर रिले का निर्माण किया जाता है। 

रिले का कार्य सिद्धांत ( Working principal of Relay in Hindi )

रिले विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के आधार पर काम करते हैं। जब रिले के कोर के चारों ओर की कुंडली को नियंत्रित करने वाले पावर स्रोत से विद्युत धारा मिलती है, तो यह सक्रिय हो जाती है। यह सक्रियता एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है, जो बदले में संपर्क को आकर्षित करती है और रिले के भीतर सर्किट को बंद कर देती है। नतीजतन, नियंत्रित किया जा रहा लोड या तो चालू या बंद हो जाता है।
 
आसान शब्दों में समझे तो Relay में सामान्यतः एक Coil (कुंडली) लगी होती है जो इसमें लगे Normal Contact (NC) को Normal Open (NO) में बदल देती है जब Relay Off होगी तब Common Terminal सीधा NC Contact से जुड़ जाता है। आपने Common Terminal पर कोई Supply दी तो वह सीधे NC Contact पर जाएगा But जैसे ही हम Relay की Coil को supply देंगे तो यह Coil active (सक्रिय) हो जाती है और Armature को अपनी तरफ खींच लेती है। जिससे कि Common Terminal अब NC Contact से हटकर NO Contact से जुड़ जाएगा लेकिन जैसे ही Relay की Supply बंद करेंगे तब इसमें लगा Spring वापिस आर्मेचर को अपनी तरफ खींच लेगा और again Common Terminal , NC Contact से जुड़ जाता है।

Relay के प्रकार ( Types of Relay in Hindi)

Relay मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं 
  1. Latching Relay
  2. Non- Latching Relay 

Latching relay 

Latching रिले वह रिले है जो एक बार संचालित हो जाने के बाद  अपनी स्थिति को बनाए रखता है । अर्थात अगर रिले की coil को विद्युत सप्लाई नहीं दिया जाए तब भी उसकी पोजीशन चेंज नहीं होगी  अर्थात् उसकी पोजीशन वहीं पर रुक जाती है जहां से उसे विद्युत देकर एक्टिवेट किया था। 
Latching Relay के उदाहरण – Locking relay, Self  laching relay, Retaining Relay .

Non latching relay 

ये वह रिले है। जिसे विद्युत देने और ना देनें से उनकी Position (स्थिति) बदलती रहती है अर्थात् यह रिले केवल तब तक संचालित रहता है जब तक कि उसे विद्युत आपूर्ति की आवश्यकता होती है। एक बार जब विद्युत आपूर्ति हटा दी जाती है, तो रिले अपनी मूल स्थिति में वापस आ जाता है।
Non-Latching Relay के उदाहरण –  Over current relay, under voltage relay, Pole relay, coil relay,

रिले को परिपथ में लगाने से क्या लाभ और हानि होती है 

Relay का उपयोग औद्योगिक नियंत्रण और ऑटोमेशन में व्यापक रूप से किया जा रहा है। ये विभिन्न प्रकार के उपकरणों और प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं, जैसे कि मोटर, हीटर, कूलर, और सेंसर। 
रिले को विद्युत परिपथ में उपयोग करने के कुछ लाभ है तो इनकी कुछ हानिया भी हैं जिन्हें नीचे दिया गया है । 

Relay के लाभ

  • रिले विद्युत रूप से नियंत्रण सर्किट को लोड सर्किट से अलग कर सकते हैं, जो नियंत्रण सर्किट को नुकसान से बचा सकता है और ऑपरेटर को सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
  • रिले उच्च-शक्ति आउटपुट सर्किट को नियंत्रित करने के लिए कम-शक्ति इनपुट सिग्नल का उपयोग करके विद्युत सिग्नल को प्रवर्धित कर सकते हैं।
  • रिले का उपयोग उपकरणों और डिवाइस को दूर से नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है। यह उन स्थितियों में उपयोगी है जहाँ उपकरण आसानी से सुलभ नहीं हैं, या जहाँ विद्युत हस्तक्षेप को रोकना महत्वपूर्ण है।
  • रिले का उपयोग उपकरण और सर्किट को अतिधारा, अतिवोल्टेज, शॉर्ट-सर्किट और अन्य असामान्य स्थितियों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया जा सकता है।
  • रिले के उपयोग में काफी लचीलापन होता है, तथा इन्हें विभिन्न अनुप्रयोग आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनुकूलित किया जा सकता है।
  • कई रिले की जीवन प्रत्याशा लंबी होती है और विफलता दर कम होती है, जिससे वे ऐसे अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त विकल्प बन जाते हैं जहां रखरखाव कठिन या महंगा होता है।

Relay के नुकसान

  1. सीमित स्विचिंग गति : सॉलिड-स्टेट रिले जैसे अन्य स्विचिंग उपकरणों की तुलना में, इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले की स्विचिंग गति धीमी होती है।
  2. टूट-फूट : रिले समय के साथ खराब हो सकते हैं, और अंततः उन्हें बदलने की आवश्यकता होगी, विशेष रूप से यदि उनका उपयोग अक्सर किया जाता है।
  3.  शोर : इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले काम करते समय शोर पैदा कर सकते हैं, जैसे कि क्लिक या भिनभिनाना। शोर-संवेदनशील अनुप्रयोगों में यह एक समस्या हो सकती है। बिजली की खपत : कुछ रिले स्टैंडबाय मोड में होने पर बिजली की खपत करते हैं और इससे कुछ प्रणालियों में बिजली की खपत बढ़ सकती है। 
  4. आकार और वजन : रिले अन्य स्विचिंग उपकरणों की तुलना में अपेक्षाकृत बड़े और भारी हो सकते हैं, जो उन्हें कुछ अनुप्रयोगों के लिए कम उपयुक्त बना सकते हैं। 
  5. विश्वसनीयता : कुछ रिले का यांत्रिक या विद्युत जीवन अपेक्षाकृत कम होता है और समय के साथ वे कम विश्वसनीय हो सकते हैं, विशेष रूप से कठोर वातावरण में।
  6.  रखरखाव : कुछ रिले को उचित संचालन सुनिश्चित करने के लिए नियमित रखरखाव की आवश्यकता होती है, जैसे सफाई या स्नेहन। 
  7. सीमित धारा : कुछ रिले की धारा और वोल्टेज रेटिंग सीमित होती है, जिसका अर्थ है कि उनका उपयोग कुछ प्रकार के उच्च-शक्ति अनुप्रयोगों में नहीं किया जा सकता है। 
  8. लागत : कुछ उच्च-प्रदर्शन रिले अपेक्षाकृत महंगे हो सकते हैं, जो लागत-संवेदनशील अनुप्रयोगों में नुकसानदेह हो सकते हैं।

Relay का अनुप्रयोग

रिले का उपयोग विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों में किया जाता है । रिले के अनुप्रयोगों का कुछ उदाहरण नीचे दिया गया है । 

  1. ऑटोमेशन:- रिले का उपयोग कारों और ट्रकों में प्रकाश व्यवस्था, ईंधन इंजेक्शन, इग्निशन और पावर विंडो जैसे कई अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है।
  2. Industrial control :- रिले का उपयोग औद्योगिक नियंत्रण प्रणालियों में मोटर नियंत्रण, प्रक्रिया नियंत्रण और तापमान नियंत्रण जैसे अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है।
  3. घरेलू उपकरणों में :-रिले का उपयोग रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन और एयर कंडीशनर जैसे उपकरणों में मोटर और अन्य घटकों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
  4. सुरक्षा उपकरणों में :- रिले का उपयोग सुरक्षा प्रणालियों जैसे अग्नि अलार्म और सुरक्षा प्रणालियों में अलार्म और अन्य सुरक्षा उपकरणों के संचालन को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
  5. विद्युत वितरण में :-रिले का उपयोग विद्युत वितरण प्रणालियों में अतिधारा संरक्षण और लोड शेडिंग जैसे अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है।

Akhilesh Patel

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