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Potential Transformer (PT) क्या है? कार्य, प्रकार, लाभ और उपयोग | हिंदी में पूरी जानकारी

Written By Akhilesh Patel

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Potential Transformer

परिचय

क्या आपने कभी सोचा है कि बिजली घरों के हाई वोल्टेज बिजली को बिना खतरे के कैसे मापा जाता है? या बिजली घरों (Substations) में लगे मीटर इतने उच्च वोल्टेज को कैसे संभालते हैं? इन सवालों का जवाब छिपा है पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (Potential Transformer) में , जिसे आमतौर पर PT या Voltage Transformer कहा जाता है— जो बिजली के क्षेत्र में एक अदृश्य रक्षक की तरह काम करता है।

Potential Transformer, जिसे हम वोल्टेज ट्रांसफार्मर भी कहते हैं, एक ऐसा यंत्र है जो उच्च वोल्टेज को एक सुरक्षित, मापने योग्य वोल्टेज में बदल देता है। यह ट्रांसफार्मर किसी भी पावर सिस्टम में उतना ही जरूरी है जितना दिल धड़कते शरीर में।

आपको जानकर हैरानी होगी कि यह छोटा सा दिखने वाला डिवाइस, पावर प्लांट से लेकर आपके घर के बिजली मीटर तक, हर जगह अपनी भूमिका निभा रहा होता है। यह न केवल मीटरिंग इंस्ट्रूमेंट्स को सुरक्षित रखता है, बल्कि प्रोटेक्शन सिस्टम को भी सटीक जानकारी देता है जिससे बड़े हादसे टाले जा सकते हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि Potential Transformer को समझना क्यों जरूरी है? क्योंकि यह न सिर्फ एक तकनीकी उपकरण है, बल्कि यह हमें ऊर्जा को सुरक्षित रूप से मापने और नियंत्रित करने की समझ भी देता है।
इस लेख में हम आपको Potential Transformer के बारे में सरल भाषा में विस्तृत जानकारी देंगे — जैसे कि Potential Transformer क्या होता है, यह कैसे काम करता है, इसके प्रकार, उपयोग, लाभ और इससे जुड़ी महत्वपूर्ण सावधानियाँ।

Potential Transformer

Potential Transformer क्या होता है ? ( What is Potential Transformer ?)

Potential Transformer एक स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर होता है जो हाई वोल्टेज को कम वोल्टेज में परिवर्तित करने का कार्य करता है , ताकि उसे सुरक्षित रूप से मापा जा सके ।”

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर एक प्रकार का इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर होता है जिसका मुख्य कार्य उच्च वोल्टेज स्तर को कम और सुरक्षित स्तर पर लाना होता है ताकि इस High Voltage को आसानी से मापा जा सके और अन्य उपकरणों को सुरक्षित रखा जा सके।

सरल शब्दों में समझें तो, Potential Transformer एक स्टेप-डाउन ट्रांसफॉर्मर होता है जो उच्च वोल्टेज पावर लाइन से जुड़े वोल्टेज को कम करके वोल्टमीटर और अन्य मीटरिंग उपकरणों के लिए उपयुक्त बनाता है।
इसका मुख्य कार्य वोल्टेज को ट्रांसफॉर्म (परिवर्तित) करना होता है — यानी High Voltage से Low Voltage में बदलना। इसलिए इसे Voltage Transformer भी कहा जाता है।

Potential Transformer की संरचना

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर एक प्रकार का स्टेप डाउन Transformer होता है जिसका उपयोग उच्च वोल्टेज को मापने के लिए किया जाता है। पोटेंशियल ट्रांसफार्मर का निर्माण इस तरह किया जाता है कि यह हाई वोल्टेज को कम वोल्टेज में सटीक रूप से बदल सके।
पोटेंशियल ट्रांसफार्मर मुख्य रूप से निम्नलिखित भाग होते हैं :

  1. Core (कोर)
  2. Primary Winding (प्राइमरी वाइंडिंग)
  3. Secondary Winding (सेकेंडरी वाइंडिंग)
  4. Insulation (इंसुलेशन)
  5. Tank (टैंक)

1. Core (कोर)

Core पोटेंशियल ट्रांसफार्मर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो पूरे ट्रांसफॉर्मर के संचालन का आधार बनाता है। यह चुंबकीय फ्लक्स को प्रवाहित करने का कार्य करता है और इसके माध्यम से वोल्टेज ट्रांसफॉर्मेशन होता है।

core

Core की विशेषताएँ :

  • Core को आमतौर पर सिलिकॉन स्टील (Silicon Steel) की पतली पतली पट्टियों को leminate करके बनाया जाता है ताकि कोर में एडी करंट (Eddy Current) और हिस्टेरेसिस लॉस ज्यादा उत्पन्न न हो।
  • Core ही PT के लिए चुंबकीय माध्यम प्रदान करता है, जिसके द्वारा प्राइमरी वाइंडिंग से सेकेंडरी वाइंडिंग में फ्लक्स ट्रांसफर होता है।
  • Core PT का वह भाग है, जहाँ Electromagnetic Induction की प्रक्रिया होती है।
  • Transformer में Core का आकार आमतौर पर E-I type या U-I type होता है।

2. Primary Winding (प्राइमरी वाइंडिंग)

प्राइमरी वाइंडिंग पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) या किसी अन्य ट्रांसफार्मर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह वह वाइंडिंग है जो उच्च वोल्टेज स्रोत से सीधे जुड़ी होती है अर्थात इनकमिंग वायर को ट्रांसफार्मर के Primary winding से ही जोड़ा जाता है। प्राइमरी वाइंडिंग का मुख्य कार्य उच्च वोल्टेज को ग्रहण करना और चुंबकीय प्रवाह (Magnetic Flux) उत्पन्न करना है, जो कोर के माध्यम से सेकेंडरी वाइंडिंग में कम वोल्टेज प्रेरित करता है।

primary winding

Primary winding की विशेषताएँ :

  • Primary winding सामान्यतः तांबे या एल्यूमीनियम के मोटे तारों से बनाई जाती है, क्योंकि ये अच्छे चालक हैं और कम प्रतिरोध प्रदान करते हैं।
  • प्राइमरी वाइंडिंग में सेकेंडरी वाइंडिंग की तुलना में अधिक फेरे (Turns) होते हैं। टर्न्स की संख्या वोल्टेज अनुपात (Transformation Ratio) को निर्धारित करती है।
  • उच्च वोल्टेज को संभालने के लिए प्राइमरी वाइंडिंग में उच्च गुणवत्ता वाला इंसुलेशन उपयोग किया जाता है, जैसे माइका, रेजिन, या ट्रांसफार्मर ऑयल, ताकि शॉर्ट-सर्किट और ब्रेकडाउन से बचा जा सके।
  • प्राइमरी वाइंडिंग कोर पर इस तरह लपेटी जाती है कि यह चुंबकीय प्रवाह को कुशलतापूर्वक उत्पन्न कर सके।
  • यह उच्च वोल्टेज के लिए डिज़ाइन की जाती है, इसलिए इसे मोटे और मजबूत इंसुलेशन के साथ बनाया जाता है।

3. Secondary Winding (सेकेंडरी वाइंडिंग)

Secondary Winding पोटेंशियल ट्रांसफार्मर का वह भाग होती है जो हाई वोल्टेज को एक कम, सुरक्षित और मापने योग्य वोल्टेज में बदलकर इंस्ट्रूमेंट या मीटरिंग डिवाइस को आउटपुट प्रदान करती है। इसकी संरचना इस प्रकार होती है कि यह सटीक मापन (Accurate Measurement) और इलेक्ट्रिकल सुरक्षा दोनों सुनिश्चित कर सके।

Secondy Winding की विशेषताएँ :

  • सेकेंडरी वाइंडिंग सामान्यतः तांबे या एल्यूमीनियम के तारों से बनाई जाती है, क्योंकि ये उच्च चालकता और कम प्रतिरोध प्रदान करते हैं।
  • Secondry winding में प्राइमरी वाइंडिंग की तुलना में बहुत कम फेरे (Turns) होते हैं। टर्न्स की संख्या प्राइमरी और सेकेंडरी वोल्टेज के अनुपात (Transformation Ratio) पर निर्भर करती है।
    जैसे:- यदि प्राइमरी वोल्टेज 11 kV और सेकेंडरी वोल्टेज 110 V है, तो टर्न्स अनुपात 100:1 होगा, यानी सेकेंडरी में प्राइमरी की तुलना में 100 गुना कम फेरे होंगे।
  • सेकेंडरी वाइंडिंग में कम वोल्टेज लेकिन अधिक करंट प्रवाहित होता है, इसलिए इसमें प्राइमरी की तुलना में मोटे तारों का उपयोग किया जाता है।

4. Insulation (इंसुलेशन)

Insulation (इंसुलेशन) पोटेंशियल ट्रांसफार्मर का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जिसका मुख्य उद्देश्य होता है उच्च वोल्टेज को सुरक्षित रूप से नियंत्रित करना और वाइंडिंग्स व कोर को आपस में शॉर्ट सर्किट होने से बचाना
अगर ट्रांसफार्मर में उचित इंसुलेशन न हो तो वह फ्लैशओवर (Flashover), लीकेज करंट, या यहां तक कि विस्फोट का कारण भी बन सकता है। इसलिए इसकी डिजाइन में इंसुलेशन को विशेष प्राथमिकता दी जाती है।

आमतौर पर Indoor PTs में Epoxy Resin insulation का प्रयोग किया जाता है। इसमें हम पूरी वाइंडिंग को Epoxy Resin insulation से कवर कर देते हैं जो इसे नमी और धूल से सुरक्षा है और Outdoor PTs में आयल का उपयोग इंसुलेशन के रूप मे किया जाता है। इसमें वाइंडिंग ट्रांसफॉर्मर ऑयल में पूरी तरह डूबी होती है। यह ऑयल न केवल इंसुलेशन का कार्य करता है बल्कि कूलिंग का भी काम करता है।

5. Tank (टैंक)

टैंक (Tank) पोटेंशियल ट्रांसफार्मर का बाहरी आवरण (Outer Body) होता है, जो आंतरिक भागों जैसे कोर, वाइंडिंग और इंसुलेशन सिस्टम को सुरक्षा प्रदान करता है। विशेष रूप से ऑयल-इमर्स्ड ट्रांसफार्मर में इसका निर्माण अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यही टैंक ट्रांसफॉर्मर ऑयल को भी सुरक्षित रखता है।

transformer tank

यह टैंक Mild Steel (MS) या Stainless Steel से बनाया जाता है, जो मजबूत, टिकाऊ और करंटरोधी होता है। इसका डिज़ाइन इस तरह किया जाता है कि यह इंटरनल इलेक्ट्रिकल स्ट्रेस और थर्मल स्ट्रेस को सह सके। टैंक को सुरक्षा के लिए अर्थिंग (Grounding) से जोड़ा जाता है ताकि ट्रांसफॉर्मर में फॉल्ट आने पर करंट सीधे जमीन में चला जाए।

Potential Transformer का कार्य सिद्धांत

Potential Transformer के कार्य सिद्धांत की बात करें तो यह इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन (Electromagnetic Induction) के सिद्धांत पर कार्य करता है। इसका मुख्य उद्देश्य है high voltage को low voltage में परिवर्तित करना होता है।

  • जब Potential Transformer के प्राइमरी वाइंडिंग को उच्च वोल्टेज स्रोत (जैसे 11 kV, 33 kV, 132 kV ) से जोड़ा जाता है ,तब इस वाइंडिंग से होकर प्रत्यावर्ती धारा ( AC current ) बहने लगाती है। जिसके कारण यह कोर में बदलता हुआ चुंबकीय प्रवाह (Alternating Magnetic Flux) उत्पन्न करती है।
  • कोर इस चुंबकीय प्रवाह को प्राइमरी से सेकेंडरी वाइंडिंग तक स्थानांतरित करता है। कोर का लेमिनेटेड डिज़ाइन एडी करंट हानियों को कम करता है।
  • जब यह फ्लक्स सेकंडरी वाइंडिंग के पास पहुंचता है तब यह सेकंडरी वाइंडिंग को कट करता है , जिसके कारण वाइंडिंग में EMF उत्पन्न होता है जिसके कारण वाइंडिंग में वोल्टेज उत्पन्न हो जाता है। इस वाइंडिंग में प्राइमरी की तुलना में कम फेरे (Turns) होते हैं, जिसके कारण कम वोल्टेज (जैसे 110 V) उत्पन्न होता है।
  • प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग्स के टर्न्स की संख्या के अनुपात (Turns Ratio) के आधार पर वोल्टेज कम होता है। यह अनुपात निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त किया जाता है :
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जहाँ:

  • Vp​: प्राइमरी वोल्टेज
  • Vs:​ सेकेंडरी वोल्टेज
  • Np​: प्राइमरी वाइंडिंग के फेरे
  • Ns: सेकेंडरी वाइंडिंग के फेरे

आइये अब इसको एक real example लेकर समझते हैं।

मान लीजिए आप एक 33kV सबस्टेशन में काम कर रहे हैं, और वहां की बिजली सप्लाई को मॉनिटर करने के लिए एक वोल्टमीटर लगाना है।
लेकिन समस्या ये है कि कोई भी सामान्य वोल्टमीटर सीधे 33,000 वोल्ट नहीं माप सकता — क्योंकि वो इंस्ट्रूमेंट सिर्फ 110V या 63.5V तक ही सेफ तरीके से काम करता है। अब इतने ज्यादा वोल्टेज को मापने के लिए हम क्या कर सकते हैं ?

इतने ज्यादा वोल्टेज को मापने के लिए हम यह कर सकते हैं कि जिस सर्किट का वोल्टेज मापना है उस सर्किट के पैरेलल में एक पोटेंशियल ट्रांसफार्मर लगा देते हैं जिसका रेटेड रेशियो 33000V / 110V = 300:1 हो। इसका मतलब, अगर प्राइमरी में 33,000 वोल्ट है, तो सेकेंडरी वाइंडिंग सिर्फ 110 वोल्ट देगा।

इस प्रकार हम इस 110v को voltmeter या किसी अन्य मीटरिंग डिवाइस से आसानी से माप सकते हैं।
इस प्रकार एक पोटेंशियल ट्रांसफार्मर उच्च वोल्टेज को निम्न वोल्टेज में परिवर्तित करके voltage को मापता है।

Potential Transformer के प्रकार

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) को उनके निर्माण, कार्य विधि और उपयोग स्थान के आधार पर कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है। ये सभी प्रकार अलग-अलग परिस्थितियों और वोल्टेज रेंज के लिए उपयुक्त होते हैं।

  1. Inductive Potential Transformer: यह सबसे सामान्य प्रकार है जो विद्युतचुंबकीय प्रेरण सिद्धांत पर काम करता है। यह प्राथमिक वाइंडिंग को उच्च वोल्टेज सर्किट से जोड़ता है और द्वितीयक वाइंडिंग को मापने वाले उपकरणों से जोड़ता है, जिससे उच्च वोल्टेज को मापने योग्य स्तर तक कम किया जा सके। यह सबसे सामान्य प्रकार का PT है जो लो और मीडियम वोल्टेज सिस्टम (11kV – 33kV) में इस्तेमाल होता है। इस प्रकार के पोटेंशियल ट्रांसफार्मर का उपयोग मीटरिंग और सुरक्षा (protection) दोनों के लिए किया जाता है।
  2. Capacitor Voltage Transformer (CVT) : कैपेसिटर वोल्टेज ट्रांसफार्मर (CVT) एक विशेष प्रकार का वोल्टेज ट्रांसफार्मर है, जो उच्च वोल्टेज (High Voltage) को कम वोल्टेज में परिवर्तित करने के लिए उपयोग किया जाता है। यह पारंपरिक पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) का एक उन्नत रूप है और विशेष रूप से उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन सिस्टम (जैसे 200kV, या उससे अधिक) में उपयोग होता है। CVT में कैपेसिटर डिवाइडर और एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक यूनिट (ट्रांसफार्मर) का संयोजन होता है।
  3. Optical Voltage Transformer – OVT) : ऑप्टिकल वोल्टेज ट्रांसफार्मर (OVT) एक आधुनिक तकनीक आधारित उपकरण है, जो उच्च वोल्टेज को मापने और उसे कम वोल्टेज सिग्नल में परिवर्तित करने के लिए ऑप्टिकल सेंसर और फाइबर ऑप्टिक तकनीक का उपयोग करता है। यह पारंपरिक पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) और कैपेसिटर वोल्टेज ट्रांसफार्मर (CVT) का एक उन्नत विकल्प है, जो विशेष रूप से उच्च वोल्टेज सिस्टम में उपयोग होता है। OVT विद्युत चुंबकीय प्रेरण के बजाय ऑप्टिकल प्रभावों (जैसे फाराडे प्रभाव या पोकल्स प्रभाव) पर आधारित होता है।

इसके अलावा भी कई तरह के pt होते हैं जैसे :
Oil-Filled PT, Dry-Type PT, Gas-Insulated PT , Metering PT, Protection PT etc.

Potential Transformer के उपयोग

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) या वोल्टेज ट्रांसफार्मर का उपयोग उच्च वोल्टेज को कम वोल्टेज में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है, ताकि इसे माप, सुरक्षा, और नियंत्रण जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों में सुरक्षित रूप से उपयोग किया जा सके। नीचे PT के मुख्य उपयोगों—मीटरिंग, प्रोटेक्शन सिस्टम, और कंट्रोल सिस्टम—को संक्षेप में और सरल भाषा में समझाया गया है:

1. मीटरिंग (Metering):

  • PT का उपयोग विद्युत सिस्टम में वोल्टेज को मापने के लिए किया जाता है। यह उच्च वोल्टेज (जैसे 11 kV, 33 kV) को कम वोल्टेज (जैसे 110 V) में परिवर्तित करता है, जो मापने वाले उपकरणों के लिए सुरक्षित और उपयुक्त होता है।
  • जैसे वोल्टमीटर का उपयोग सिस्टम में वोल्टेज के स्तर को मापने के लिए किया जाता है ,एनर्जी मीटर बिजली की खपत (kWh) को मापने के लिए

2. प्रोटेक्शन सिस्टम (Protection System)

  • PT का उपयोग सुरक्षा उपकरणों, जैसे रिले, को कम और सुरक्षित वोल्टेज प्रदान करने के लिए किया जाता है, जो विद्युत सिस्टम में असामान्य परिस्थितियों (जैसे ओवरवोल्टेज, ओवर करंट ) का पता लगाते हैं।
  • असामान्य स्थिति में जैसे अंडरवोल्टेज , ओवर वोल्टेज या फॉल्ट डिटेक्शन के दौरान रिले को low वोल्टेज की आवश्यकता पड़ती है। यह लौ वोल्टेज देने का कार्य PT करता है।
  • इस प्रकार PT प्रोटेक्शन सिस्टम में भी अपनी अहम् भूमिका निभाता है।

3. कंट्रोल सिस्टम (Control System):

  • PT का उपयोग विद्युत सिस्टम में वोल्टेज की निगरानी और नियंत्रण के लिए किया जाता है, ताकि सिस्टम को स्थिर और सुरक्षित रखा जा सके।
  • यदि सब स्टेशन का लाइन वोल्टेज बार-बार घटता-बढ़ता है, तो कंट्रोल पैनल में लगा PT यह बदलाव मापता है और सिस्टम उसी के अनुसार वोल्टेज को स्टेबल बनाए रखने के लिए ट्रांसफार्मर टैप चेंजर या वोल्टेज रेगुलेटर को वोल्टेज सिग्नल प्रदान करता है ताकि वोल्टेज को स्थिर रखा जा सके।

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर और करंट ट्रांसफार्मर में अंतर (PT vs CT in Hindi)

नीचे पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) और करंट ट्रांसफार्मर (CT) के बीच प्रमुख अंतरों को तालिका के रूप में संक्षेप में और सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है ।

विशेषतापोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT)करंट ट्रांसफार्मर (CT)
1. कार्यहाई वोल्टेज को लो वोल्टेज में बदलता हैहाई करंट को लो करंट में बदलता है
2. प्राइमरी कनेक्शनप्राइमरी वाइंडिंग उच्च वोल्टेज लाइन के समानांतर (Parallel) जुड़ी होती है।प्राइमरी वाइंडिंग उच्च धारा लाइन के श्रृंखला (Series) में जुड़ी होती है।
3. सेकेंडरी आउटपुटकम वोल्टेज (जैसे 110 V, 120 V)।कम धारा (जैसे 1 A, 5 A)।
4. कार्य सिद्धांतविद्युत चुंबकीय प्रेरण के आधार पर वोल्टेज को कम करता है।विद्युत चुंबकीय प्रेरण के आधार पर धारा को कम करता है।
5. उपयोगवोल्टमीटर, एनर्जी मीटर, प्रोटेक्शन रिलेएम्पीयर मीटर, एनर्जी मीटर, प्रोटेक्शन रिले
6. टर्न्स अनुपातप्राइमरी में अधिक फेरे, सेकेंडरी में कम फेरे।प्राइमरी में कम फेरे, सेकेंडरी में अधिक फेरे।
6. वोल्टेज और करंट का व्यवहारवोल्टेज को सटीक मापने के लिए डिज़ाइनकरंट को सटीक मापने के लिए डिज़ाइन
7. लोडिंगहमेशा हल्के लोड पर कार्य करता हैभारी लोड और फुल लाइन करंट से गुजरता है
8. सुरक्षा पहलूओपन सर्किट होने पर कोई खतरा नहींसेकेंडरी को ओपन करना खतरनाक (Overvoltage हो सकता है)
9. लागतअपेक्षाकृत महंगातुलनात्मक रूप से सस्ता
10. प्राथमिक उपयोग क्षेत्रवोल्टेज मापने और वोल्टेज आधारित सुरक्षाकरंट मापने और करंट आधारित सुरक्षा

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) के लाभ

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) या वोल्टेज ट्रांसफार्मर के कई लाभ हैं, जो इसे विद्युत सिस्टम में माप, सुरक्षा, और नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। Potential Transformer के कुछ मुख्य लाभ निचे दिए गए हैं।

  1. PT उच्च वोल्टेज (जैसे 11 kV, 33 kV) को कम वोल्टेज (जैसे 110 V) में बदल देता है, जिससे मापने वाले उपकरण (वोल्टमीटर, एनर्जी मीटर) और ऑपरेटर सुरक्षित रहते हैं।
  2. PT से प्राप्त वोल्टेज आउटपुट का अनुपात स्थिर और सटीक होता है, जिससे मीटरिंग में गलती की संभावना बहुत कम होती है।
  3. यह वोल्टमीटर, एनर्जी मीटर, रिले आदि को सीधे हाई वोल्टेज के संपर्क में आने से बचाता है।
  4. PT का उपयोग न केवल वोल्टेज मापने में होता है, बल्कि यह प्रोटेक्शन रिले को भी सटीक इनपुट देता है।
  5. सेकेंडरी साइड को प्राइमरी (हाई वोल्टेज) से इलेक्ट्रिकली आइसोलेट करके सुरक्षा प्रदान करता है।
  6. कंट्रोल सिस्टम में वोल्टेज मॉनिटरिंग और ऑटोमैटिक रेस्पॉन्स देने में मदद करता है।
  7. एक बार इंस्टॉल करने के बाद PT लंबे समय तक बिना किसी विशेष मेंटेनेंस के काम करता है।
  8. PT का डिज़ाइन सरल होता है, जिससे इसे बनाना और लगाना आसान और सस्ता होता है।

निष्कर्ष

इस पोस्ट में हमने जाना कि पोटेंशियल ट्रांसफार्मर कैसे काम करता है, इसकी संरचना कैसी होती है, यह किन सिद्धांतों पर आधारित है, इसके कितने प्रकार होते हैं, और यह किन-किन क्षेत्रों में उपयोग में आता है। इसके साथ ही, CT और PT में अंतर तथा PT के लाभ भी समझे।

संक्षेप में कहें तो, Potential Transformer न केवल पावर सिस्टम को सुरक्षित बनाता है, बल्कि यह संपूर्ण विद्युत नेटवर्क को सटीक और भरोसेमंद नियंत्रण देने में भी सहायता करता है। यदि आप इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के छात्र हैं या विद्युत प्रणाली से जुड़े कार्य करते हैं, तो PT की समझ आपके लिए अनिवार्य है।

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Akhilesh Patel

I am Akhilesh Patel and experienced blogger and the creative mind behind Electrical Gyan, an educational platform dedicated to simplifying complex technical concepts. With 3 years of blogging expertise, I specializes in sharing technical knowledge in a way that's easy to understand, making learning accessible to everyone. Passionate about empowering readers with practical insights, I combines deep expertise with a commitment to clarity, ensuring that every article educates and inspires.

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