जब आप सुबह उठते हैं और पंखा चल रहा होता है, मोबाइल चार्ज हो रहा होता है, वॉटर हीटर पानी गर्म कर रहा होता है — तब शायद ही हम सोचते हैं कि ये सारी सुविधाएं आखिर इतनी सुरक्षित और स्थिर बिजली कैसे पा रही हैं क्योंकि पावर स्टेशन में उत्पन्न होने वाली बिजली हजारों वोल्टेज में होती है।
अब कल्पना कीजिए — अगर पावर स्टेशन से वही हजारों वोल्ट की बिजली सीधे आपके मोबाइल या टीवी तक पहुंच जाए, तो क्या होगा?
शायद डिवाइस जल जाएगा या कोई बड़ा हादसा हो सकता है।
इतनी हाई वोल्टेज बिजली को आखिर कैसे नियंत्रित किया जाता है?
कैसे उसे उपयोग योग्य वोल्टेज में बदला जाता है — ताकि हर उपकरण को उसके अनुसार बिजली मिल सके?
इस पूरी प्रक्रिया को अंजाम देता है — ट्रांसफार्मर (Transformer)।
ट्रांसफार्मर एक स्थिर (static) विद्युत यंत्र है जो एसी वोल्टेज (AC Voltage) को एक स्तर से दूसरे स्तर तक बिना आवृत्ति (frequency) को बदले हुए बदलता है।
सरल शब्दों में कहें तो,
“ट्रांसफार्मर एक ऐसा यंत्र है जो High Voltage को Low Voltage में या Low Voltage को High Voltage में बदलने का कार्य करता है।”

Transformer को बिजली की दुनिया का “Voltage Manager” भी कह सकते हैं, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि पावर स्टेशन से लेकर गांव के किसी कोने तक विद्युत आपूर्ति (Electric Power Supply) बिना किसी जोखिम के पहुंच सके । बिजली के Transmission, Distribution और उपकरणों की सुरक्षा — इन सभी में Transformer की अहम भूमिका होती है।
तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हम Transformer के बारे में विस्तृत वर्णन करेंगे और जानेंगे कि Transformer क्या होता है ? यह कैसे काम करता है ? इसकी संरचना कैसी होती है? Transformer कितने प्रकार के होते हैं आदि।
Transformer क्या होता है ? ( What is Transformer in Hindi ?)
Transformer एक स्थिर (static) विद्युत यंत्र है जो एसी वोल्टेज (AC Voltage) को एक स्तर से दूसरे स्तर तक बिना आवृत्ति (frequency) बदले बदलता है। जैसे कि हाई वोल्टेज को लो वोल्टेज में या लो वोल्टेज को हाई वोल्टेज में। यह मुख्य रूप से AC (Alternating Current) पर कार्य करता है और इसमें कोई भी चलने वाला हिस्सा नहीं होता।
यह मुख्य रूप से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन (Electromagnetic Induction) के सिद्धांत पर कार्य करता है।
Transformer मुख्य रूप से Ac voltage को step up ( voltage को बढ़ा देना ) या step down ( voltage को घटा देना ) करने का कार्य करता है और यह frequency को बिना बदले इस कार्य को करता है । Transformer इस कार्य को बिना किसी मूविंग पार्ट के आसानी से कर देता है ।
इसलिए Transformer को हम इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं कि
” एक ऐसी मशीन जो बिना किसी moving पार्ट के और बिना frequency को बदले Ac Voltage को step-up और step-down करती है , उसे ही transformer ( ट्रांसफार्मर ) कहते हैं।”
Step-up : Voltage को बढ़ा देना ।
Step-down : voltage को घटा देना ।
Transformer की संरचना ( Construction of Transformer in Hindi )
एक Transformer निम्नलिखित भागों से मिलकर बना होता है जिसे नीचे समझाया गया है :
- Core (कोर)
- Winding ( वाइंडिंग )
- Insulation (इंसुलेशन)
- Tank (टैंक)
1. Core (कोर)
Core किसी भी Transformer का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो पूरे ट्रांसफॉर्मर के संचालन का आधार बनाता है। कोर ही Winding में उत्पन्न हुए विद्युत् फ्लक्स के लिए चुम्बकीय पाथ प्रदान करने का कार्य करता है।

Core की विशेषताएँ :
- Core को आमतौर पर सिलिकॉन स्टील (Silicon Steel) की पतली पतली पट्टियों को leminate करके बनाया जाता है ताकि कोर में एडी करंट (Eddy Current) और हिस्टेरेसिस लॉस ज्यादा उत्पन्न न हो।
- Core ही Transformer के लिए चुंबकीय माध्यम प्रदान करता है, जिसके द्वारा प्राइमरी वाइंडिंग से सेकेंडरी वाइंडिंग में फ्लक्स ट्रांसफर होता है।
- Core Transformer का वह भाग है, जहाँ Electromagnetic Induction की प्रक्रिया होती है।
- Core के दो प्रमुख प्रकार होते हैं:
- Shell type – शेल टाइप ट्रांसफार्मर (Shell Type Transformer) में कोर (Core) बाहर होता है और वाइंडिंग्स (Windings) अंदर होती हैं।
- Core type – कोर टाइप ट्रांसफार्मर (Core Type Transformer) में वाइंडिंग्स (कॉइल्स) कोर के बाहर लपेटी जाती हैं, जबकि कोर अंदर होता है।


2. Winding ( वाइंडिंग )
Winding transformer ( ट्रांसफार्मर ) का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग होता है । वाइंडिंग ही transformer में चुंबकीय प्रेरण ( Electromagnetic Induction) के माध्यम से विद्युत ऊर्जा को ट्रांसफार्मर में एक circuit से दूसरे circuit में स्थानांतरित करने का कार्य करती है । Transformer में यह वाइंडिंग Primary और Secondary coil के रूप में कोर पर लपेटी रहती हैं । Winding को सामान्यतः तांबे या एल्यूमिनियम के तारों को leminate करके बनाया जाता है । यह coils ही विद्युत धारा को प्रवाहित करने और चुंबकीय फ्लक्स उत्पन्न करने या चुंबकीय फ्लक्स प्रेरित करने का कार्य करती है ।
Transformer में यह दो प्रकार की winding होती हैं:
- Primary winding :- यह ट्रांसफार्मर की वह coil होती है जो transformer के इनपुट source से जुड़ी होती है ।
- Secondary winding :– यह ट्रांसफार्मर की वह coil होती है जो transformer को output प्रदान करती है ।
अगर voltage को बढ़ाना है तब primary winding में टर्नो की संख्या कम होती है और secondary winding में टर्नो की संख्या अधिक होती है ।
यदि वोल्टेज को घटाना है तब primary winding में टर्नो की संख्या अधिक होती है और secondary winding में टर्नो की संख्या कम होती है ।
3. Insulation (इंसुलेशन)
इन्सुलेशन ट्रांसफार्मर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो प्राथमिक वाइंडिंग, द्वितीयक वाइंडिंग, और चुंबकीय कोर को एक-दूसरे से और बाहरी पर्यावरण से विद्युत रूप से अलग (electrically isolate) करता है। यह सुरक्षा, विश्वसनीयता और उपकरण की लंबी आयु सुनिश्चित करता है। यह विद्युत रिसाव (electrical leakage) को रोकने, शॉर्ट सर्किट से बचाने, और उपकरण की सुरक्षा व दक्षता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
Transformer में उसके voltage level और उसकी संरचना के हिसाब से निम्नलिखित प्रकार के Insulation उपयोग किए जाते हैं:
- Solid insulation ( जैसे:- Insulating Paper,Pressboard,Mica,Polymer Films)
- Liquid insulation ( जैसे:- Transformer Oil,सिंथेटिक ऑयल)
- Gaseous insulation ( जैसे:- सल्फर हेक्साफ्लोराइड (SF6),नाइट्रोजन )
- Composite insulation ( बड़े ट्रांसफार्मरों में ठोस और तरल इंसुलेशन का संयोजन उपयोग होता है। )
4. Tank (टैंक)
टैंक (Tank) करंट ट्रांसफार्मर का बाहरी आवरण (Outer Body) होता है, जो आंतरिक भागों जैसे कोर, वाइंडिंग और इंसुलेशन सिस्टम को सुरक्षा प्रदान करता है। विशेष रूप से ऑयल-इमर्स्ड ट्रांसफार्मर में इसका निर्माण अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यही टैंक ट्रांसफॉर्मर ऑयल को भी सुरक्षित रखता है।

यह टैंक Mild Steel (MS) या Stainless Steel से बनाया जाता है, जो मजबूत, टिकाऊ और करंटरोधी होता है। इसका डिज़ाइन इस तरह किया जाता है कि यह इंटरनल इलेक्ट्रिकल स्ट्रेस और थर्मल स्ट्रेस को सह सके। टैंक को सुरक्षा के लिए अर्थिंग (Grounding) से जोड़ा जाता है ताकि ट्रांसफॉर्मर में फॉल्ट आने पर करंट सीधे जमीन में चला जाए।
” ट्रांसफॉर्मर टैंक वह बाहरी आवरण है जिसमें ट्रांसफॉर्मर के सभी आंतरिक हिस्से (कोर, वाइंडिंग्स, और तेल) रखे जाते हैं। यह आमतौर पर स्टील या अन्य मजबूत धातु से बनाया जाता है और इसके अंदर ट्रांसफॉर्मर तेल (Transformer Oil) भरा जाता है, जो इंसुलेशन और शीतलन (Cooling) का कार्य करता है। टैंक का डिज़ाइन ट्रांसफॉर्मर की सुरक्षा और दक्षता को बढ़ाने के लिए होता है।”
इसके अलावा भी Transformer के कुछ महत्वपूर्ण भाग होते हैं जो सामान्यतः बड़े रेटिंग वाले ट्रांसफार्मर में ही होते हैं।
1. Conservator Tank
- Conservator Tank ट्रांसफॉर्मर का एक सिलेंडरनुमा कंटेनर होता है जो मुख्य टैंक के ऊपर या किनारे की ओर लगा होता है। इसका कार्य transformer oil के थर्मल विस्तार (thermal expansion) और संकुचन (contraction) को समायोजित करना होता है।

2. Breather
- Breather एक ऐसा यंत्र है जो ट्रांसफॉर्मर में प्रवेश करने वाली हवा से नमी को अवशोषित करता है। यह विशेष रूप से Conservator Tank के साथ जुड़ा होता है और इसमें Silica Gel भरी होती है जो हवा की नमी को सोख लेती है।

3. Bushings
- Bushings एक प्रकार का इंसुलेटेड कंडक्टर होती हैं, जो ट्रांसफॉर्मर की टैंक को बिना शॉर्ट सर्किट या लीकेज के, बाहरी सर्किट से जोड़ने में मदद करती हैं।

4. Tap Changer
- Tap Changer ट्रांसफॉर्मर की वाइंडिंग के उन पॉइंट्स को कहते हैं जहां से टर्न्स की संख्या को बढ़ाया या घटाया जा सकता है, जिससे आउटपुट वोल्टेज को नियंत्रित किया जा सके। यह एक ऐसा स्विचिंग डिवाइस होता है जो ट्रांसफॉर्मर के वोल्टेज रेशियो को बदलकर आउटपुट वोल्टेज को स्थिर बनाए रखता है।
5. Radiator
- Radiator ट्रांसफॉर्मर का एक Cooling Component होता है, जो transformer oil की गर्मी को वातावरण में प्रसारित (dissipate) करके ट्रांसफॉर्मर को ठंडा करता है। यह एक प्रकार का heat exchanger होता है। Transformer में गर्म तेल ऊपर की ओर उठता है और Radiator के पाइपों से होकर गुजरता है, जहां यह वातावरण में अपनी गर्मी छोड़ता है और ठंडा होकर वापस मुख्य टैंक में लौट जाता है।

6. Buchholz Relay
- Buchholz Relay एक गैस-संवेदनशील सुरक्षा उपकरण (Gas Actuated Protection Relay) है, जो ट्रांसफॉर्मर में आंतरिक दोष (Internal Faults) के कारण उत्पन्न गैस को पहचान कर अलार्म या ट्रिपिंग सिग्नल देता है।
यह मुख्यतः Conservator Tank और Main Tank के बीच की पाइप में लगाया जाता है।

Transformer का कार्य सिद्धांत ( Working Principle of Transformer in Hindi )
Transformer फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण और म्युचुअल इंडक्शन के सिद्धांत पर कार्य करता है । ट्रांसफार्मर में मुख्यतः तो winding होती हैं Primary winding और Secondary winding ।
” जब Primary Winding को AC विद्युत supply से जोड़ा जाता है तो फैराडे के नियमानुसार Primary Winding के चारों तरफ परिवर्तित चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है । यह चुंबकीय क्षेत्र core के माध्यम से होते हुए सेकेंडरी वाइंडिंग तक पहुंचता है और सेकेंडरी वाइंडिंग के साथ लिंक होता है । तब mutual induction सिद्धांत के अनुसार जब यह परिवर्तित चुंबकीय क्षेत्र secondary winding के साथ लिंक करता है तो उसके कारण secondary winding में EMF ( Voltage ) उत्पन्न हो जाता है ।”
उत्पन्न हुआ यह वोल्टेज Secondary winding के Turns पर निर्भर करता है । यदि सेकेंडरी वाइंडिंग में turno की संख्या अधिक है तो यह वोल्टेज को बढ़ा देगा और यदि सेकेंडरी वाइंडिंग में turno की संख्या कम है तो यह वोल्टेज को कम कर देगा।

जहाँ :
- Vp: प्राइमरी वोल्टेज
- Vs: सेकेंडरी वोल्टेज
- Np: प्राइमरी वाइंडिंग के फेरे
- Ns: सेकेंडरी वाइंडिंग के फेरे
- यदि Primary Winding में टर्नों की संख्या अधिक है और Secondary Winding में टर्नों की संख्या कम है तो इस प्रकार के ट्रांसफार्मर को Step- Down Transformer कहते हैं अर्थात् यह voltage ⚡ को कम करने का कार्य करते हैं ।
- यदि Primary Winding में टर्नों की संख्या कम है और Secondary Winding में टर्नों की संख्या अधिक है तो इस प्रकार के ट्रांसफार्मर को Step- Up transformer कहते हैं अर्थात् यह voltage ⚡ को बढ़ाने का कार्य करते हैं ।
ट्रांसफार्मर का E.M.F. समीकरण ( E.M.F. Equation of a Transformer )
ट्रांसफार्मर का मुख्य कार्य होता है – वोल्टेज को बढ़ाना (step-up) या घटाना (step-down), और यह कार्य आपसी प्रेरण (Mutual Induction) के सिद्धांत पर आधारित होता है। इस प्रक्रिया में ट्रांसफार्मर के दोनों कॉइल्स (Primary और Secondary) में एक प्रकार की EMF (Electromotive Force) उत्पन्न होती है, जो निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है:
- चुंबकीय फ्लक्स (Magnetic Flux)
- कॉइल्स की घुमावों की संख्या (Number of Turns)
- Supply की आवृत्ति (Frequency)
इसलिए ट्रांसफार्मर की प्राइमरी और सेकंडरी वाइंडिंग में उत्पन्न EMF को निम्नलिखित सूत्र द्वारा व्यक्त किया जाता है।

जहाँ :
- E: प्रेरित EMF (वोल्ट में)
- F: Supply Frequency
- N: Coil में टर्नो की संख्या(प्राइमरी या सेकेंडरी)
- Φm: अधिकतम चुंबकीय फ्लक्स (वेबर में)
सूत्र की उत्पत्ति
जब ट्रांसफार्मर के प्राइमरी winding को AC विद्युत supply से जोड़ते हैं तो प्राइमरी वाइंडिंग में बहने वाली धारा sinusoidal wave में होती है। इसलिए इस धारा से उत्पन्न होने वाला flux भी sinusoidal wave में होगा । इसलिए इसे हम इस प्रकार लिख सकते हैं :

फैराडे के नियमानुसार प्रेरित EMF को इस प्रकार लिखा जा सकता है —


Φ का मान समीकरण 1 से रखने पर

t और ω के respect में differentiation करने पर

जैसा कि हम जानते हैं कि cosωt कोsin(π/2 – ωt) के रूप में लिख सकते हैं , लेकिन जैसा कि हम देख सकते हैं कि उपरोक्त समीकरण में ऋणात्मक चिह्न है,इसलिए इसे हम इस प्रकार संशोधित कर सकते हैं।

समीकरण (2) को इस प्रकार लिखा जा सकता है

जहाँ Em = TωΦm प्रेरित EMF का अधिकतम मान है ,
Sinusoidal wave के लिए, EMF का RMS मान निम्न द्वारा दिया जाता है ,



यही ट्रांसफार्मर में प्रेरित होने वाले EMF का समीकरण है जो Supply Frequency (f ),Coil में टर्नो की संख्या (N )और चुंबकीय फ्लक्स ( Φ) पर निर्भर करता है।
अब हम Primary और Secondery winding में उत्पन्न होने वाले emf को कुछ इस प्रकार लिख हैं
Primary Winding में उत्पन्न वोल्टेज ( EMF )

Secondery winding में उत्पन्न वोल्टेज ( EMF )

ट्रांसफार्मर के Voltage Ratio और Tern Ratio में संबंध
प्रति टर्न वोल्टेज वह वोल्टेज है जो ट्रांसफार्मर के कोर में उत्पन्न चुंबकीय फ्लक्स के कारण कॉइल के प्रत्येक घुमाव में प्रेरित होता है।
E/T = 4.44Φmf
इस प्रकार समीकरण 5 से ,प्राइमरी वाइंडिंग के प्रत्येक टर्न में उत्पन्न होने वाला वोल्टेज

इस प्रकार समीकरण 5 से ,प्राइमरी वाइंडिंग के प्रत्येक टर्न में उत्पन्न होने वाला वोल्टेज

समीकरण (7) और (8) दर्शाते हैं कि दोनों वाइंडिंग में प्रति टर्न वोल्टेज समान है। अर्थात्,

Transformer के प्रकार ( Types of Transformer in Hindi )
Transformer को उनके निर्माण, voltage और उपयोग स्थान के आधार पर कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है। ये सभी प्रकार अलग-अलग परिस्थितियों और वोल्टेज रेंज के लिए उपयुक्त होते हैं।
1. वोल्टेज के आधार पर :
- Step-Up Transformer :- यह ट्रांसफार्मर ऐसे होते हैं जो वोल्टेज को बढ़ाता है और करंट को कम करता है। इसका उपयोग बिजली उत्पादन केंद्रों में उच्च वोल्टेज को ट्रांसमिट करने के लिए किया जाता है।
- Step-Down Transformer :- यह ट्रांसफार्मर वोल्टेज को कम करता है और करंट को बढ़ाता है। इसका उपयोग घरेलू और औद्योगिक बिजली वितरण में किया जाता है।
2. उपयोग के आधार पर:
- पावर ट्रांसफार्मर ( Power Transformer ):-इसका उपयोग जनरेशन स्टेशन और ट्रांसमिशन नेटवर्क में किया जाता है। ये उच्च वोल्टेज और पावर रेटिंग के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं।
- डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर ( Distribution Transformer ) :- इस प्रकार के ट्रांसफार्मर का उपयोग उपभोक्ताओं तक बिजली पहुँचाने के लिए प्रयोग किया जाता है। ये कम वोल्टेज पर कार्य करते हैं।
- इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर ( Intrument Transformer ):-
- करंट ट्रांसफार्मर (CT):– इस प्रकार के ट्रांसफार्मर का उपयोग उच्च करंट को मापने के लिए उपयोग किया जाता है, जो मीटरिंग और प्रोटेक्शन सिस्टम में काम आता है।
- पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT):– इस प्रकार के ट्रांसफार्मर का उपयोग उच्च वोल्टेज को मापने और प्रोटेक्शन के लिए किया जाता है।
3. निर्माण के आधार पर :
- कोर टाइप ट्रांसफार्मर ( Core Type Transformer ):- इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में Coils कोर के चारों ओर लपेटे जाते हैं। यह सामान्य और सरल डिज़ाइन के होते हैं , जो अधिकांश अनुप्रयोगों में उपयोग होता है।
- शेल टाइप ट्रांसफार्मर ( Shell Type Transformer ):- इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में कोर coils को चारो तरफ से घेरता है। यह अधिक मजबूत होता है और शॉर्ट-सर्किट के खिलाफ बेहतर सुरक्षा प्रदान करता है।
4. विद्युत् सप्लाई के आधार पर :
- Single phase transformer :- सिंगल फेज ट्रांसफार्मर वह ट्रांसफार्मर होते हैं जिनके इनपुट तथा आउटपुट दोनों सिरों पर सिंगल फेज की सप्लाई ली और दी जाती है।
- Three Phase Transformer:- थ्री फेज ट्रांसफार्मर वह ट्रांसफार्मर होते हैं जिनके इनपुट तथा आउटपुट दोनों सिरों पर तीन फेज की सप्लाई ली और दी जाती है।
Transformer की रेटिंग kVA में क्यों होती है?
ट्रांसफार्मर की रेटिंग KVA में दो कारणों से किया जाता है।
- Power Factor की अनिश्चिता
- Transformer में होने वाली हानियां
1. Power Factor की अनिश्चिता : जब ट्रांसफार्मर को बनाया जाता है तो उसे समय नहीं पता होता है कि ट्रांसफार्मर के साथ किस प्रकार का लोड जोड़ा जाएगा यदि इसकी रेटिंग kw में किया जाए तो ,
KW = V.I.cos(θ)
अर्थात ट्रांसफार्मर से जुड़ने वाला लोड वोल्टेज, करेंट और पावर फैक्टर पर निर्भर करता है । जैसा कि हमें पता है कि अलग अलग लोड के लिए power factor अलग अलग होता है ।
Load Type | Power factor |
---|---|
Resistance | 1 |
Capacitance | Leading |
Inductance | Lagging |
ट्रांसफार्मर से जुड़ने वाले लोड का पावर फैक्टर अलग-अलग होता है जिसके कारण ट्रांसफार्मर की रेटिंग KW में देना थोड़ा मुश्किल होता है ।
2. Transformer में होने वाली हानियां :- ट्रांसफार्मर की रेटिंग KVA में देने का दूसरा मुख्य कारण ट्रांसफार्मर में होने वाले losses है । जैसा कि हमें पता है कि ट्रांसफार्मर में दो प्रकार की losses होते हैं :
- Iron/core loss
- Copper loss
Core loss transformer के कोर में होता है जो कि supply वोल्टेज पर निर्भर करता है । Core loss fix होता है क्योंकि वोल्टेज भी fix होता है ।
Copoer loss T/F की winding में होता है जो कि current पर निर्भर करता है ।अलग अलग load पर current का मान बदलता रहता है जिसके कारण copper loss fix नहीं होता है ।
अतः ट्रांसफार्मर में होने वाला losses पूरा current और voltage पर निर्भर करता है । इसका power factor से कोई लेना देना नहीं होता है । इन्हीं दो कारणों से ट्रांसफार्मर की रेटिंग KVA में किया जाता है ।
Transformer के लाभ ( Advantage of Transformer in Hindi )
Transformer के कई लाभ हैं, जो इसे विद्युत सिस्टम में माप, सुरक्षा, और नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। Transformer के कुछ मुख्य लाभ निचे दिए गए हैं।
- Transformer वोल्टेज को बढ़ाकर करंट को घटा देता है, जिससे I²R हानि (Copper Loss) बहुत कम हो जाती है।
- ट्रांसफार्मर एक स्थिर यंत्र (Static Device) होता है, इसलिए इसमें घिसाव नहीं होता और यह कम रखरखाव (Low Maintenance) में भी लंबे समय तक चलता है।
- ट्रांसफार्मर को स्थापित करना और संचालित करना सरल होता है, और यह विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में कार्य कर सकता है।
- ट्रांसफार्मर की दक्षता बहुत अधिक (लगभग 95-99%) होती है, क्योंकि इसमें कोई घूर्णन भाग नहीं होता, जिससे यांत्रिक हानियाँ नगण्य होती हैं।
- ट्रांसफार्मर के प्राइमरी और सेकेंडरी सर्किट के बीच विद्युतीय आइसोलेशन प्रदान करता है, जिससे सुरक्षा बढ़ती है और शॉर्ट-सर्किट का जोखिम कम होता है।
- ट्रांसफार्मर का उपयोग एक छोटे मोबाइल चार्जर से लेकर बड़े पावर ग्रिड, इंडस्ट्रियल मशीन, और रेलवे सिस्टम तक में किया जाता है।
- CT (Current Transformer) और PT (Potential Transformer) जैसे इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर उच्च वोल्टेज या करंट को सुरक्षित स्तर पर लाकर मीटरिंग और प्रोटेक्शन को आसान बनाते हैं।
निष्कर्ष
इस पोस्ट में हमने जाना कि Transformer कैसे काम करता है, इसकी संरचना कैसी होती है, यह किन सिद्धांतों पर आधारित है, इसके कितने प्रकार होते हैं, और यह किन-किन क्षेत्रों में उपयोग में आता है। इसके साथ ही, ट्रांसफार्मर से होने वाले लाभ को भी समझा।
Frequently Asked Questions
-
CT (Current Transformer) करंट को कम करता है ताकि मीटर और रिले सुरक्षित कार्य कर सकें।
-
PT (Potential Transformer) वोल्टेज को कम करता है ताकि उच्च वोल्टेज को मापा जा सके।
एक अच्छा ट्रांसफारर 95% से 99% तक दक्षता प्रदान करता है। बड़े पावर ट्रांसफारर में Efficiency अधिक होती है।
ट्रांसफार्मर में मुख्यतः दो प्रकार के हानियाँ होती हैं:
- Core Loss (Iron Loss): Hysteresis और Eddy Current Loss
- Copper Loss: वाइंडिंग में Resistance के कारण
Transformer इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन पर आधारित होता है, जिसमें फ्लक्स का बदलाव जरूरी होता है। DC में स्थिर फ्लक्स होता है, जिससे EMF induce नहीं होता — इसलिए ट्रांसफारर DC पर काम नहीं करता।
अगर Secondary open हो और Primary से Supply दी जाए तो बहुत हाई वोल्टेज EMF उत्पन्न हो सकता है जो इंसुलेशन को नुकसान पहुंचा सकता है।